जब बिस्तर मां बन जाती है"
जब जिंदगी से थक हार। कर अपने 4 × 4 के कमरे में जाता हूं और देखता हु वो गुस्ताख मुंहफट आईना जो दिल का अच्छा है एक छोटी से अलमारी और एक डेस्क पे पड़े चंद किताबें जिसे रखे हुए धूल जम रहे। असाइनमेंट की कॉपी जिसे जमा करने की एक दिन पहले रात भर जाग कर बनाया था फिर नजर जाते है अपने बिस्तर पे कभी कभी ऐसा महसूस होता ही की बिस्तर एक मां है मेरे लिए। जब भी उदास होता अकेला पन से हार जाता हु तो इसे मां की गुड मै जाकर। सो जाता हु फिर आंखों का दर्द यह उदासी सब अपने अंदर पी जाती है जब अपने बस्तर पे लेट। चलते फेंके को देखता हु तो महसूस होता है सीए ही मेरे भी जिंदगी हो गए है जो एक लूप मै फंस गया है सुबह उठो कॉलेज जाओ। ५ /६ क्लास अटेंड करो मसला तो अटेंडेंस का है वरना कॉलेज जाओ कौन अभी तो कॉलेज मै एडमिशन ही लिया था और ऐसा लगता है सो कर उठा हु और मिड टर्म आगया सोचा था कॉलेज जाऊंगा नई नई दोस्त बनाऊंग ग्रुप मै लड़की रहेंगी मौज मस्ती करूंगा मै मै उसके यादों से बाहर ही नहीं निकल पाया उसको भुलने क्या लिए। पहले अपना शहर छोरा फिर अपना स्टेट छोड़ा बस नहीं छोड़ पाया तो उसके याद मेरे रूम का जो सफीद रंग है आज भी उसके बालों की गजरे की याद दिलाते है। कितना खुशनसीब था वो चूड़ी वाला जो यूंही छू लेता था कहलाए उसके खूबसूरत आंखे |
वो आँखें कितनी भी खूबसूरत क्यों न हो
उनका कोई मतलब नहीं है जब तक कि वे आपको न देख रही हैं
मै इसलिए भी उसके करीब नहीं आता
तूफ़ान से बचा जाता है उलझा भी जाता
मै तो खुद को अभिमन्यु समझता था जो हर चक्रवि पार कर लेता मगर मै तेरे ज़ुफ़्फ़ो मै फंस गया
वरना ज़हन तो ऐसा था कि कलेक्टर बन जाता
इंतजार लम्बा इंतजार
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