अगर तुम मिलने आजाओ

अगर तुम मिलने आ जाओ,
कुछ अधूरी बातें और कुछ अधूरी ख्वाहिशें पूरी हो जाएं।
मेरी ज़िंदगी में एक अधूरी मुलाकात रह गई है...
कभी हम भी इश्क़ में मुब्तिला हुए थे।
अहमद फ़राज़ का शेयर है:-
भले दिनों की बात है
भली सी एक शक्ल थी
न ये कि हुस्न-ए-ताम हो
न देखने में आम सी थी 
लगता है यह शेयर अहमद फ़राज़ ने मेरे लिए ही लिखे थे 
 हम ने इजहारे मोहब्बत किया  जवाब हा आया सब ठीक चल रहा था 
एक दिन मोहतरमा बोलीं — "आज मार्केट चलते हैं।"
तुम्हारा भाई बाइक लेकर निकल गया।
निकल तो गए थे, मगर मालूम नहीं था कि क्या करना है।

 फिर मोहतरमा ने बोला कि उनकी नेल पॉलिश लेना है तो हम लोग दुकान गया इन्होंने ने बोला कि रेड टाइप मै नेल पॉलिश चाहिए उसने दिखाया फिर बोलती है हल्का रेड उसके बाद बोलते है ब्राउन रेड ऐसे करते करते उन्होंने ने पूरा टेबल भर दिया उससे दिन हमको पता चला कि 10 जड़ा कलर भी होते है फिर उन्होंने ने लिया बेबी पिंक कलर का फिर जाते वक्त  भूख लगने लगा थी ice cream खाने पहुंचे थे भईया ने मीनू दिया मोहतरमा बग़ैर देखे बोलते है। सबसे महंगा वाला भईया चाहिए वह ice cream वाला मेरे देख रहा हम अपने गर्लफ्रेंड को देख रहे फिर जब दोबारा मेरे गर्लफ्रेंड बोलते है तो वह ice क्रीम दिया फिर मेरे से पूछा भईया आप को कौन सा वाला चाहिए हम बोले सबसे सस्ता वाला है तो वह भी चल जाएगा |
तोहफ़ा भी उसके वास्ते अंगूठी  लिया 
वल्लाह मैं उसके  अंगुली से आगे नहीं गया...
फिर वह वक़्त आगया जब उसका पूरा फैमिली के साथ दूसरे राज्य मै वो जा रहे थे मै बहुत हिम्मत अपने अंदर लाकर उससे देखने गया स्टेशन ले इधर उधर खोज रहा उससे। पसीने पसीने हुए फिर उसपे नजर पड़ते है आंखे नीचे उसके। चेहरे पे २ बाल आंख मै काजल आसमानी कलर का कपड़ा  वही मुस्कान  वही आंखे , लेकिन आज उसमे कुछ अलग था स्टेशन  पे भीड़ थी मगर मेरी लिए सब कुछ धीमा होगा था फिर मेरे अंदर थोड़ा जान मै जान आया  और मैं बैठ गया ट्रेन। ट्रेन आने में पाँच मिनट थे,
और उन पाँच मिनटों में मुझे वो पाँच महीने याद आ गए,
जब हम दोनों एक-दूसरे की दुनिया थे
• पार्किंग मै। Ice क्रीम खाना 
• शाम के टाइम मै राइड पे जाना
• एक अधुरी लड़ाई जो सुलझी नहीं
मै कुछ कहना चाहता था शायद मगर लफ़्ज़ गले में फंस गए | फिर उठा और  और उसके पापा से मुलाकात करने चला गया उसके पापा बस निर्मली जानते थे मुझे जैसे ही उसके पापा पास पहुंचा दोनों मां बेटी साथ बैठे हुए थे दोनों आपोस्टी डायरेक्शन मै बैठे मै देखने लगे 180° मेरी दर भी लग रहा था बात करने मै। पैर भी खाप रहे थे
थोड़ा सा बात हुआ और बैठे गया 
फिर प्लेटफॉर्म 3 पे ट्रेन लगे और ऐसा लगा जैसे दुनिया। थम गाया है  वो और उसकी फैमिली ट्रेन मै बैठे और ट्रेन चल दिया  मेरा हाथ का रौवा खड़ा था मुंह लाल थे रोना चाहा मगर आँखों ने मेरी मदद न की। आँसू जाने कहाँ ग़ायब हो गए थे।



फिर मै उसे प्लेटफार्म  पर एक ब्रांच पे बैठ गया बगल मै एक ताऊ बीड़ी पे रहे थे उन्होंने 2/3 काश मार और नीच फीक कर जूती से मसल दिया  फिर मै उठा और चल दिया  इससे बात को  ढाई साल होगे 
क्या खूब लिखा था शायर लुधियानवी ने:-
जिस तरह से थोड़ी सी तिरे साथ कटी है
बाक़ी भी उसी तरह गुज़र जाए तो अच्छा
हर गली, हर मोड़, हर कॉफ़ी शॉप, हर पार्किंग — सब में उसकी याद बसती थी।
 उसके जाने की बाद मुझे अपने शहर मै घुटन महसूस होने लगा जब भी उससे रस्ते से गुजरता बस उसका खयाल आता मैना उसके साथ अपना शहर घुमा था वो कॉफी शॉप वो मॉल के पार्किंग मै इस क्रीम खान सब याद आता था अपने शहर की हवा मै मै उसको मसूस। कर पता था वो देर रात तक चैटिंग फिर मै भी उसके यादों से भागने लगा फिर मै दूसरे शहर चल गया पढ़ने मगर फिर भी उसको अपने यादों से दूर न कर पाया मगर अब यह यह आलम है कि  अब वह लौट कर न आने वाले की इंजतार मै खुद को तरतीब कर बैठा हु जब चाहूं तुम्हें मिल नहीं सकता लेकिन जब चाहूं तुम्हें याद मैं कर सकता हूँ ये उसकी मेहरबानी है वो घर मै ही रहती है 
वरना अलीगढ़ की दोपहरी भी अवध की शाम जो जाए|
ये सोच कर कि तिरा इंतिज़ार लाज़िम है
तमाम-उम्र घड़ी की तरफ़ नहीं देखा 
 जब भी ज़िंदगी के रंज़-ओ-ग़म से हार जाता हूँ,
वही एक चेहरा याद आता है, जो मुझे फिर से जीना सिखा जाता है।कभी कभी खयाल आता है जिस तरह से थोड़ी सी तिरे साथ कटी है
बाक़ी भी उसी तरह गुज़र जाए तो अच्छा होता मगर यह हो ना सका   काश ऐसा कोई मनज़र होता की मेरे कांधे  पे तेरा सर होता
वैसे तो उसने उलझा दिया दुनिया मै वरना एक और कलंदर होता  मुझे ग़म है कि मैं ने ज़िंदगी में कुछ नहीं पाया
ये ग़म दिल से निकल जाए अगर तुम मिलने आजाओ ...
 

 

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