भूख
भूख
भूख…
ये लफ़्ज़ सुनते ही सबसे पहले याद आता है — पेट की भूख।
लेकिन पूरा सच ये है कि इंसान सिर्फ रोटी का भूखा नहीं होता।
भूख कई तरह की होती है — और हर भूख में छिपा होता है एक तूफ़ान, एक क्रांति और हिम्मत |
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🍞 पेट की भूख
ये वो भूख है जिसे अनदेखा नहीं किया जा सकता।
ये मौजूद है उन बेबस, लाचार, अनाथ लोगों में —
जो दो वक़्त की रोटी के लिए लड़ते हैं।
और जिनके पास ज़रूरत से ज़्यादा है,
वो दूसरों का हिस्सा भी निगल जाते हैं।
पेट की भूख से क्रांति भी जन्म लेती है,
और अपराध भी।
इसी भूख ने कभी मज़दूर को विद्रोही बनाया,
और कभी अमीर को बेईमान।
सो जाते हैं फ़ुटपाथ पर अख़बार बिछा कर —
मज़दूर, जो नींद की गोली नहीं खाते।
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❤️ सम्मान की भूख
हर इंसान चाहता है कि उसे सुना जाए,
कद्र की जाए, पहचाना जाए।
ये भूख कभी तारीफ़ की होती है,
तो कभी बस “शुक्रिया” सुनने की।
जब ये भूख अधूरी रह जाती है,
तो इंसान ज़िंदा रहकर भी अंदर से मर जाता है।
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🧠 ज्ञान की भूख
कुछ लोग रोटी से नहीं, सीखने से जीते हैं।
हर सवाल का जवाब, हर अंधेरे में रोशनी की तलाश —
यही भूख है जो दुनिया को आगे बढ़ाती है।
यही भूख किताबें लिखवाती है, खोज करवाती है,
और आने वाली पीढ़ियों को दिशा देती है।
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🔥 जिस्म की भूख
ये वो भूख है जो इंसान को इंसान बनाती भी है,
और कभी-कभी हैवान भी।
प्यार में ये पवित्र होती है,
लेकिन जब हवस में बदल जाती है,
तो रिश्ते, भरोसा, और इंसानियत — सब निगल जाती है।
जिस्म की भूख अगर सीमा में रहे,
तो सुकून देती है;
अगर हद पार करे, तो विनाश।
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🕊️ आज़ादी की भूख
हर दिल में एक तड़प होती है — ख़ुद के फैसले लेने की।
ज़ंजीरें तोड़ने की, अपनी सोच जीने की।
कभी ये भूख गुलामी तोड़ती है,
कभी समाज के पुराने नियम।
आज़ादी की भूख ही वो चिंगारी है
जिससे क्रांति भड़कती है,
और इंसानियत साँस लेती है।
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🌿 अंत में...
भूख बुरी नहीं होती,
बस उसका रुख़ तय करता है कि
वो इंसानियत को बनाएगी या मिटाएगी।
रोटी की भूख से ज़िंदगी चलती है,
सपनों की भूख से दुनिया बदलती है,
और आज़ादी की भूख से —
इंसान सच में ज़िंदा होता है।
भूख कैसा भी क्यों न हो मगर बहुत खतरनाक होता है
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